आज दिनांक 10 दिसम्बर को शासकीय पूर्व माध्यमिक शाला में bagless Day पर विभिन्न सांस्कृतिक कार्यकम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारम्भ प्रधान पाठिका श्रीमती मीनाक्षी शर्मा ने सरस्वती वंदना गाकर किया। इस कार्यक्रम में बच्चों ने विभिन्न छत्तीसगढ़ी परिधानों में मनमोहक प्रस्तुति दी। बच्चों ने छत्तीसगढ़ के लोक नृत्य के बारे में परिचय देकर अपनी नृत्य की प्रस्तुति दी.
छत्तीसगढ़ का लोक नृत्य पुरे भारत में अपना विशिष्ट पहचान रखते है. यंहा के लोक नृत्य, लोक कथाएं और लोक गीत हमारी छत्तीसगढ़ी संस्कृति को अलग ही पहचान देती है. यंहा के लोक नृत्य छत्तीसगढ़ के मूल जनजातियों जैसे – मुरिया , गोंड , बैगा , हल्बा , उराँव आदि से सम्बंधित है. छत्तीसगढ़ के प्रमुख लोक नृत्य है- सुआ , राउत नाचा , पंथी , करम , सरहुल , गौर , गैंड़ी नृत्य , सैला नृत्य , ककसार , मांदरी नृत्य , परब नृत्य आदि.
कार्यक्रम का संचालन श्रीमती सरस्वती साहू ने किया। पुरे कार्यक्रम की रुपरेखा शिक्षिका श्रीमती डॉ राजेश्वरी ठाकुर व शिक्षक देवेंद्र कुमार साहू ने तैयार किया। छत्तीसगढ़ी परिधान तैयार करने में श्रीमती आगेश्वरी साहू , नुतेश्वर कुमार चंद्राकर , प्रशांत बघेल और साजन वर्मा का विशेष योगदान रहा. समिति के अध्यक्ष कन्हैया वर्मा व भागीरथी निर्मलकर भी पुरे कार्यक्रम में उपस्थित थे।





सुआ नृत्य से क्या समझते हो है?
छत्तीसगढ़ राज्य की स्त्रियों का यह एक प्रमुख नृत्य है। इस नृत्य को महिलाएं समूह में करती है । इस नृत्य में उनके सुख-दुख की अभिव्यक्ति स्त्री मन की भावनाओं और उनके अंगों का ताल मेल ‘सुवा नृत्य’ या ‘सुवना’ में देखने को मिलता है। सुआ नृत्य का शुरुआत दीपावली के दिन से होता है। गाँवो में बच्चे और महिलाये इस नृत्य को करती है। इसके बाद यह नृत्य अगहन मास तक चलता है

छत्तीसगढ़ राज्य में कौन से नृत्य को राज्य नृत्य घोषित किया गया है?
छत्तीसगढ़ राज्य का लोकनृत्य डंडा नृत्य है। इसे ‘सैला नृत्य’ भी कहा जाता है। यह पुरुषों द्वारा नृत्य किये जाने वाला कलात्मक और समूह वाला नृत्य है।