रविंद्रनाथ टैगोर के अनमोल वचन

जो मन की पीड़ा को स्पष्ट रूप से नहीं कह  सकते उन्हीं को क्रोध अधिक आता है

जिस तरह घोंसला सोती हुई चिड़िया को आश्रय देता है उसी तरह मौन तुम्हारी वाणी को आश्रय देता है

मत बोलो यह सुबह है और इसे कल के नाम के साथ खारिज मत करो इसे एक जन्मजात बच्चे की तरह देखो जिसका अभी कोई नाम नहीं है

उपदेश देना सरल है पर समाधान बताना कठिन है

सिर्फ खड़े होकर पानी देखने से आप नदी नहीं पार कर सकते

Title 1

सौंदर्य सत्य की मुस्कुराहट है जब सत्य खुद अपना चेहरा एक उत्तम दर्पण में देखता है

विश्वविद्यालय महापुरुषों के निर्माण के कारखाने हैं और अध्यापक उन्हें बनाने वाले कारीगर हैं

मन का धर्म है मनन करना मनन में ही उसे आनंद है मनन में बाधा प्राप्त होने से उसे पीड़ा होती है